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________________ १३६] संक्षिप्त जैन इतिहास । म्पाके शालमहाशाल, हस्तिशीर्षके अदिनशत्रु; ऋषभपुरके धनवाइ; वीरपुरके वीर कृष्णमित्र, विजयपुरके राजा वासवदत्ता कनकपुरके प्रियचंद्र; साकेतपुरके मित्रनंदि; और महापुरके बल राजा भगवान महावीरके मित्र थे। पोदनपुरके प्रसन्नचंद्र भगवान महावीर के समोशरणमें दीक्षा ले राजर्षि हुये थे', मोरियगण राज्यके प्रख्यात् पुरुष जैनधर्मके पोषक थे। भगवान के दो गणघर इसी देशके थे। इनके अतिरिक्त अनेक विदेशी राजा भी भगवान के भक्त थे जिनका उल्लेख विद्याधररूपमें हुआ है। जिप्त समय भगवान महावीरजीका समोशरण सम्मेदशिखिरपर विराजमान थ; उस समय भूतिलकनगरका विद्याधर राना हिरण्यवर्मा भगवानकी शरणमें आया था। इसके पिता हरिवलने विपुलमति नामक चारण मुनिसे दिगम्बरीय दीक्षा ग्रहण की थी। इसी प्रकार अन्य कितने ही विदेशी लोगोंने जैनधर्म में विश्वास रखकर आत्मकल्याण किया था। राजाओंके अतिरिक्त बहुतसे श्रावक धनसम्पदामें भरपूर अव्रती गृहस्थ श्रावक प्रख्यात सेठ थे। इनमें उज्जैनीके धन्यऔर श्राविकाये वीर कुमार सेठका उल्लेख पहिले किया जाचुका प्रभूके अनन्य है। उनके विशिष्टगुणों को देखकर श्रेणिक भक थे। महाराजने उन्हें अपना जमाई बनाया था। इसी तरह राजगृहके सेठ शालिभद्र थे; जिन्होंने विदेशोंसे व्यापार करके खुब धन संचय किया था और खूब धर्मप्रभावना की थी। उस समय विदेहदेश अपने व्यापारके लिये प्रमिद्ध था। वहांके १-एइजै० पृ० ६५० । २-गुवापरि० पृ. ४० । ३-उपु० १० २७३ | ४-उपु० पृ. २७२ ।
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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