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________________ ( ४२ ) भावार्थ-जो चारों दिशाओं में तीन वर्ष श्रावर्त करे, चार चार प्रणाम करे, काय से ममत्व त्याग खड़ा रहे, खड़गासन या पद्मासन दो श्रासनों में से कोई आसन लगावे, मन, वचन काय को शुद्ध रक्खे तीनों काल वन्दना करके सामायिक करे वह सामायिक प्रतिमा धारी है, दोनों हाथ जोड़े हुए अपने शरीर के बाएं से दाहने की ओर घुमाने को आवर्त कहते हैं। सामायिक की विधि-संक्षेप से यह है कि किसी एकांत स्थान में जाकर एक श्रासन चटाई, आदि पर पहले पूर्व या उत्तर को मुख करके खड़ा हो, नौ णामोकार मंत्र पढ़कर दंडवत करे व प्रतिज्ञा करे कि जब तक ध्यान करता हूँ व यह श्रासन नहीं छोड़ता हूँ तब तक जो कुछ मेरे पास इस समय शरीर में है इसके सिवाय सर्व पदार्थों का त्याग है व अपने चारों तरफ थोड़ी जमीन और रख कर शेष जमीन का त्याग है फिर उसी दिशा को खड़ा हो नौ या तीन दफे वही मंत्र पढ़े, और तीन आवर्त करे फिर मस्तक मुका कर दोनों, जोड़े हुए हाथ लगावे ऐसा प्रणाम करें, फिर खड़े ही खड़े अपनी दाहनी तरफ पलट कर उसी तरह नौ या तीन दके मंत्र 'पदकर प्रणाम करे। ऐसे ही पीछे व बांई तरफ करके बैठ जावे, फिर सामायिक पाठ पढ़े (जो भाषा का पाठ पुस्तक के अन्त में है) जप करे आत्मा का विचार करे। अन्त में खड़ा हो नौ दफे मंत्र पढ़ कर दंडवत करे, हर दफे ४८ मिनिट सामायिक करे। कारण वश कभी कुछ कम भी कर सकता है।
SR No.010469
Book TitleSanatan Jain Mat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherPremchand Jain Delhi
Publication Year1927
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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