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________________ ( ३८ ) सम्यग्दर्शन को शुद्ध रखने के लिये जाति (मामा कां-पक्ष ) कुल ( पिता का पक्ष ) धन, विद्या, अधिकार, रूप, बल, तप-इन आठ शक्तियों के होने पर कभी घमंड न करे। इन बलों से परोपकार - कर तथा ज्ञान पूर्वक जगत में व्यवहार करके नीचे लिखे आठ अंग पाले (१) सच्चे धर्म की ऐसी अटल श्रद्धा रक्खे कि कभी कष्ट पड़ने पर भी उसे न छोड़े, तथा सत्य के कहने व पालने में कभी भय न करे । कर्मों के उदय के सामने निर्भय रहे एक वीर योद्धा के समान संसार में चले । प्राण जाय तौ भी सत्य मार्ग को न त्यागे । (२) क्षण भंगुर इन्द्रिय सुख की इच्छा न करे – धर्म को सभी सुख शांति पाने व स्वाधीनता के लिये सेवन करे । (३) रोगी, दुःखी प्राणी व अचेतन घृणित पदार्थों को देखकर मन में ग्लानि न लावे | उनके स्वरूप को विचार कर समभाव रक्खे भील, म्लेच्छ. चंडाल, मिहवर आदि पर भी दया रख के उनके जीवन को सुधारने के लिये सत्य धर्म का उपदेश देकर धर्म की श्रद्धा करावे व मद्य मांसादि छुड़ावे व पांच अणुव्रत गृहण करावे । पतितों का उद्धार करना बड़ा भारी परोपकार है । (४) मूढ़ता से देखा-देखी बिना समझे मिथ्या धर्म क्रिया को नहीं करने लग जावे । (५) अपने आत्मा से दोषों को हटावे व उसके गुणों को बढ़ावे, धर्मात्मा आदि की निन्दा न करके उसके दोषों को अम्य रीति से निकालने की चेष्टा करे ।
SR No.010469
Book TitleSanatan Jain Mat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherPremchand Jain Delhi
Publication Year1927
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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