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________________ जमा हुमा रहे, नियमित शुद्ध भोजन पान, निद्रा, यम, नियम मादि साधनों की आवश्यकता है। वास्तव में आत्म-ध्यान तत्वज्ञानी के लिये इतना दुर्लभ नहीं है तथापि साधारण मानवों के लिये इसका सिद्ध करना कठिन है परन्तु वे यदि व्यवहार धर्म के आश्रय से अभ्यास करे तो उनको उसकी सिद्धि धीरे धीरे हो सकती है। वास्तव में निश्चय रत्नत्रय, या आत्मनुभव या आत्मध्यान ही सुख शांत का व स्वाधीन होने का व शुद्ध होने का उपाय है। जैसे पेट भरने का उपाय भोजन करना है। परन्तु जैसे भोजन का मिलना कठिन है। भोजन होने के लिये द्रव्य, सामग्री फिर उसका तय्यार करना आदि साधन चाहिये। वैसे ही प्रात्म-ध्यान के लिये बाहरी साधन चाहिये । इस ही साधन को व्यवहार रत्नत्रय या व्यवहार धर्म कहते हैं । यह व्यवहार धर्म निश्चय धर्म की प्राप्ति का निमित्त कारण है। व्यवहार धर्म व्यवहार सम्यग्दर्शन, ब्यवहार सम्यग्ज्ञान व व्यवहार सम्यग्चारित्र को व्यवहार धर्म कहते हैं व्यवहार सम्यग्दर्शन जीव आदि सात तत्त्वों पर विश्वास करना है जिनका कथन पहले संक्षेप से कह दिया गया है तथा सच्चेदेव, सच्चे शास्त्र व सच्चे गुरु पर विश्वास लाना है जो सात तत्वों की श्रद्धा का कारण है।
SR No.010469
Book TitleSanatan Jain Mat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherPremchand Jain Delhi
Publication Year1927
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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