SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पैदा हो जाती है उनकी यह मान्यता ठीक नहीं है। क्योंकि न तो कभी अचेतन से चेतन बन सकता है न किसी ने बाजकाज बना के बताया है। जड़ परमाणुमों में सदा जड़पना व अजानपना रहेगाइसलिये उनसे बनी हुई वस्तु में भी वही अजानपनाया जड़पना रहेगा। क्योंकि हर एक अवस्था जो इस दुनियां में पैदा होती है वह किसी वस्तु की ही होती है जिसकी अवस्था में भी वही गुणपाए जाते हैं जोमूल वस्तु में होते हैं । सुवर्ण से सुवर्ण के व लोहे से लोहे के बर्तन ही बनेंगे। जैसे अमूर्तीक जड़ आकाश से मूर्तीक जड़ पदार्थ या अमूर्तीक चेतन पदार्थ नहीं पैदा हो सकते हैं। वैसे मूर्तीक जड़ पदार्थ से अमूर्तीक या चेतन पदार्थ नहीं पैदा हो सकते हैं । जड़ की बनी चीजों में स्मृति, ज्ञान, विचार व भिन्न भिन्न भावों का पलटना नहीं हो सकता है । जड़ से बनी धूप, छाया, रोशनी एकसी दशा में जब तक वे रहें रहेंगी, वे इच्छानुसार घट या बढ़ नहीं सकती है-परन्तु जिन प्राणियों में जीव है वे इच्छानुसार काम करते हुए दिखलाई पड़ते हैं। एक चींटी चलते चलते रुक जाती है-कहीं पर सुगंध पाकर दौड़ जाती है । "मैं जानता हूँ" "मैं भोगता हूँ" "मैं सुखी हुआ" "मैं दुःखी हुआ" इत्यादि मान जड़ को नहीं हो सकता है इसलिये जो यह सब शान रखता है उसी को आत्मा कहते हैं इसलिये आत्मा को जड़ से भिन्न स्वतंत्र चेतन पदार्थ ही मानना चाहिये-जैसे जड़ परमाणु अमर अविनाशी हैं वैसे सर्व आत्माएं इस लोक में अमर अविनाशी हैं। जब यह नियम है कि सत् (मौजूदा) पदार्थ कमी असत् (गैर मौजूदा) नहीं हो सकता अथवा असत् पदार्थ कभी सत् नहीं हो सकता तब यह सिद्ध
SR No.010469
Book TitleSanatan Jain Mat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherPremchand Jain Delhi
Publication Year1927
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy