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________________ ३६ सम्यक्त्व विमर्श सूत्र मे बताया है कि अनन्तानुबधी कषाय तीव्र होकर जीवन पर्यन्त रहती है, इसका क्या समाधान होगा ? समाधान-यह स्वरूप, कषाय के उस उत्कृष्ट स्थान को सूचित करता है - जो जीवन पर्यन्त रहे, उसे छोडे ही नही और उसी मे जीवनभर लगा रहे। जिसके अस्तित्व से श्रात्मा का खटका भी नही रहे अपने हिताहित का ज्ञान एकदम भुला दे, तो वह ग्रनन्तानुबधी कषाय होती है । बहुत-से ऐसे प्राणी होते है कि जिन्हे उग्ररूप मे क्रोध आता है, किन्तु थोडी देर बाद शात भी होजाता है, तो उन्हे अनन्तानुबधी का उदय कहना कदाचित् साहस ही होगा । महाराजा चेटक को संग्राम मे अपने प्रतिपक्षी कालिकुमार आदि पर आया हुआ क्रोध, साधारण नही था । उस समय की उनकी मानसिक स्थिति का पता निरयावलिका सूत्र के निम्न मूलपाठ से लगता है । "तए णं चेडए राया कालंकुमारं एजमाणं पासइ, काले एजमाणे पासित्ता आसुरुते जाव मिसिमिसे - माणे धणुं परामुसई” 'जाव' शब्द से 'रुट्ठे कुविए चंडिक्किए' विशेषण भी ग्रहण करने चाहिए, अर्थात् वे क्रोध की उग्रता मे धमधमा रहे थे । उस क्रोधावेश मे ही उन्होने कालकुमार को बाण मारकर मौत के घाट उतार दिया था । इस प्रकार के उग्र-क्रोधी को क्या देशविरत श्रावक माना जा सकता है ? हा, क्योकि उनका यह उग्र - क्रोध भी अपने अपराधी पर है । वह अनन्तानुबन्धी तो ठीक, पर अप्रत्याख्यानी की सीमा को भी तोड़नेवाला
SR No.010468
Book TitleSamyaktva Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1966
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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