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________________ तीन कषायी भी सम्यग्दृष्टि ? बन्धता । अशुभ लेश्या का उदय एक प्रकार की झलक के समान- ऐसा होता है कि जिससे नीच गति के योग्य बन्ध की सामग्री सग्रहित नहीं होती। हा, जिसके सम्यक्त्व प्राप्त करने के पूर्व ही अन्य गति का प्रायुष्य बँध गया है, उसके परिणाम उतने अशुभ हो सकते हैं । कुछ ऐसे प्राणी भी होते है--जो सम्यक्त्व साथ लेकर छठी नरक मे जाते हैं । जिस समय वे छठी नरक मे जाते हैं, उस समय से पूर्व ही उनमे तीव्रतर कृष्ण लेश्या के भाव पा ही जाते हैं, क्योकि जिस स्थान पर वे जाते हैं, उसके योग्य लेश्या, मृत्यु के अन्तर्मुहुर्त पहले आ ही जाती है । निश्चय ही आ जाती है । अब विचार करिये कि छठी नरक मे जानेवाले के भाव कितने कलुषित--कितने तीव्रतर-अशुभतर होगे? फिर भी सम्यक्त्व रहती है और सातवी नरक मे तीव्रतम कृष्ण लेश्या होते हुए भी सम्यक्त्व रह सकती है । सम्यक्त्व अवस्था मे नीच गति का बध नही होता, यही सम्यक्त्व का प्रभाव है, किन्तु नीचगति मे जाने वाले के सम्यक्त्व होती ही नही-ऐसा मानना गलत है। तीव्र कषायी भी सम्यग्दृष्टि ? ___ शका-यदि तीन कषाय मे अनन्तानुबंधी नही होता, तो १ भगवती सूत्र श १३ उ. १ + अशुभ लेश्या में सम्यक्त्व प्राप्त नहीं होती, प्राप्त तो शुभ लेश्या में ही होती है, किंतु प्राप्ति के बाद अशुभ लेश्या आजाय तो भी सम्यक्त्व रह सकती है।
SR No.010468
Book TitleSamyaktva Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1966
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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