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________________ सजातीय विजातीय २५३ पाई, अब उसी का अवलम्बन क्यो लं? नीचे लाने वाली चीज, कभी ऊँचा भी उठा सकती है ? रस्सी के अवलम्बन से मैं नीचे उतरा, अब ऊँचा चढने मे रस्सी की क्या जरूरत ? इस प्रकार सोचकर यदि वह रस्सी का सहारा नही ले, तो उस पाताल कुएँ से वह बाहर नही निकल सकता। वह ऊपर उठ कर बाहर आता है, तो रस्सी के सहारे से ही । बिना पराश्रय के वह ऊपर उठने मे समर्थ नही है । यही बात प्रस्तुत विषय मे लागू होती है। जीव अप्रशस्त पर-विजातीय पर के सहारे से पतन को प्राप्त होता है और प्रशस्त पर-सजातीय पर के सहारे से उत्थान करता है। मोह के वश होकर, अनेक प्रकार के पाप कर्म करके पतित होता है, और अप्रशस्त मोह-नीचे ले जाने वाले मोह को छोडकर प्रशस्त (ऊपर उठाने वाले) मोह-सवेग धर्म-प्रेम, देव गुरु भक्ति आदि से उत्थान कर लेता है। जीव, जीव का सजातीय द्रव्य है, किंतु जो जीव, पुदगलानन्दी एवं भवाभिनन्दी हैं, वे सजातीय होते हुए भी सम्यग्दृष्टि के लिए विजातीय हैं,-जड के पक्षकार हैं। इनका अवलम्वन नीचे ले जाने वाला है। सजातीय, सम्यग्दृष्टि आदि हैं। इनमें गुणाधिक देव गुरु का प्रेम, रस्सी की तरह हमारे उत्थान मे आधारभूत-अवलम्बन रूप होता है। मोह की मस्ति से अठारह प्रकार के पाप करके जीव पतित हुआ, कुएँ के पैदे मे पहुँच गया। नीचे उतरते समय उसकी दृष्टि भी नीची ही थी । वह अधोमुख था । अब वह
SR No.010468
Book TitleSamyaktva Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1966
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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