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________________ यथार्य दृष्टि की आवश्यकता ७ सिक्का खरा है, या खोटा, भाषा के दोष भी जिसमे रहे हुए हो, जिसका उच्चारण अशुद्ध हो और अनपढ हो । उसे यह भी ज्ञान नही हो कि अमुक वस्तु स्वास्थ्य के लिए हितकर है, या हानिप्रद । इस प्रकार का लौकिक अज्ञान रखता हुआ भी जीव, सम्यग्दृष्टि हो सकता है। स्व और पर का ज्ञान, स्व-पर सयोग के कारण और उसका शुभाशुभ परिणाम जानना, मुक्तदशा और उसके उपायों को जानकर विश्वास करना ही सम्यग दर्शन अथवा यथार्थ-दषि "जिस ज्ञान से संसार हेय और मोक्ष उपादेय माना जाता हो, वही सम्यग् ज्ञान है और उस पर पूर्ण विश्वास हो, वही सम्यग् दृष्टि है"-ऐसा एकान्त नहीं कहा जा सकता, क्योकि इस प्रकार माननेवाले भी असम्यग् दृष्टि हो सकते हैं । ससार मे ऐसे भी मत हैं, जो ससार को हेय और मोक्ष को उपादेय मानते हैं, फिर भी वे उनका यथार्थ स्वरूप नही जानते । कोई विश्वभर में केवल एक ही प्रात्मा मानते हैं, कोई आत्मा को कुटस्थ (ठोस) एवं अपरिणामी मानते हैं। किन्ही को मुक्तात्मा का स्वरूप ही ठीक ज्ञात नही है । इस प्रकार गलत धारणा से, मोक्ष की इच्छा रखते हुए भी प्राप्त नहीं कर सकते। . एक जापानी किसान ने कभी हाथी देखा ही नही था, किंतु उसने सुना अवश्य था कि ससार मे 'हाथी' नामका एक विशालकाय प्राणी होता है और वह सवारी के काम मे प्राता, है । उसने अपने गाव के मखिया (पटेल) को पूछा । पटेल
SR No.010468
Book TitleSamyaktva Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1966
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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