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________________ मिथ्याश्रुत का पठन-पाठन - २१७ श्वर के अतिरिक्त उपास्य का त्याग तो कर दिया, किंतु उनके विचारो-सिद्धातो के प्रतिपादक साहित्य का त्याग नही किया, तो मिथ्यात्व के प्रवेश का खतरा खुला ही है । जिस प्रकार पक्षी के छोटे बच्चो के लिए कौआ, बाज आदि घातक-प्राणी खतरनाक होते हैं, उसी प्रकार जिनका सम्यक्त्व क्षायिक नही है और विशिष्ट प्रकार का क्षायोपशमिक भी नहीं है, उनके लिए मिथ्याश्रुत का पठन-पाठन घातक सिद्ध होता है । हमारे कई अदूरदर्शी लोग कहा करते हैं-"अजैन साहित्य पढने मे हर्ज __ ही क्या है ? जब हम सम्यग्दृष्टि हैं, तो अजन, साहित्य हमारे लिए सम्यग्रूप से ही परिणत होगा, असम्यग् रूप से नही होगा-ऐसा नन्दी सूत्र मे लिखा है, इसलिए अजैन साहित्य को भी पढना ही चाहिए।" इस प्रकार कहने वाले गंभीर विचार नही करते, या यो कहना चाहिए कि जानते हुए भी अनजान बनकर, अपनी कुश्रद्धा से भद्रिक जीवो को भ्रम मे डालते हैं। वे यह नही सोचते कि सामान्य सम्यक्त्वी के लिए जिस प्रकार 'पर-पाखंड परिचय' खतरनाक होकर मिथ्यात्व मे ले जाने वाला होता है, इसलिए उसका त्याग सम्यक्त्वी के लिए हितकर बतलाया है, उसी प्रकार मिथ्याश्रुत का त्याग भी हितकर है। जिस प्रकार ब्रह्मचारी के लिए स्त्री का परिचय और स्त्री-कथा वर्जनीय है, उसी प्रकार सम्यक्त्वी के लिए मिथ्याश्रुत दर्जनीय होता है । जो सम्यक्त्वी, दृढ श्रद्धालु होता है, जिसने जिनागमो का गंभीर ज्ञान प्राप्त किया है,-ऐसा व्यक्ति यदि मिथ्याश्रत देखता है, तो उससे उसकी श्रद्धान विशेष रूप से दृढ होती
SR No.010468
Book TitleSamyaktva Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1966
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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