SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वेश की उपयोगिता साधुता मे वेश का क्या महत्व है ? समाधान-नही, वेश महत्वशाली वस्तु नही है। जो केवल वेश का ही काम देता हो, उसकी उपयोगिता परिचय (अन्य से भिन्नता बताने) तक ही सीमित रहती है। किंतु जैन मुनियो के पास ऐसी कोई वस्तु नही होती, जो केवल परिचय का ही काम देती हो और संयम साधना मे उसका कोई उपयोग नही हो। हम रजोहरणादि उपकरण को केवल वेश मे ही शुमार नही कर सकते, क्योकि ये धर्म-साधना के साधन हैं। रजोहरण से प्रमार्जन द्वारा प्रथम महाव्रत की रक्षा होती है और मुखवस्त्रिका द्वारा भाषा-समिति का रक्षण होकर संयम-साधना होती है। इन्हे केवल वेश मे ही गिन लेना भूल है । ये दो उपकरण तो जिनकल्पी मुनि भी रखते हैं। यदि इनका स्वीकार नही किया जाय, तो सयम का ठीक तरह से पालन होना असंभव हो जाता है। क्योकि शरीरधारी के लिए खाना,पीना,चलना, फिरना, सोना, बैठनादि क्रियाएं तो अनिवार्य होती ही है । यदि रजोहरण द्वारा प्रमार्जन नही किया जायगा, तो अहिंसा का पूर्ण पालन कैसे होगा ? इसी प्रकार बिना मुखवस्त्रिका के भाषा के साथ निकली हुई वायु से, जीवो की होती हुई विराधना कैसे टलेगी ? अतएव कम से कम ये दो उपकरण तो सुसाधुओ के लिए आवश्यक है ही। इसके सिवाय बिना पात्र के प्राहार पानी का निर्दोष और यतना पूर्वक ग्रहण, तथा रुग्ण साधु की वैयावृत्य भी असभव हो जाती है। इसलिए पात्र की भी आवश्यकता रहती है। इन चीजो को वेश में शुमार नहीं करना चाहिए।
SR No.010468
Book TitleSamyaktva Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1966
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy