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________________ सम्यक्त्व विमर्श जन्म, जरा, और मृत्यु के दुःखो से सदा के लिए छुड़ा दे, जो पुद्गल की पकड से मुक्त करके सर्व तन्त्र स्वतन्त्र कर दे, जिसकी आराधना से प्रखण्ड, अपूर्व, अनुपम और सादिश्रनन्त - शाश्वत सुखो की प्राप्ति होती हो, वही सुमार्ग है । ऐसे निर्दोष मार्ग को परम वीतरागी सर्वज्ञ सर्वदर्शी जिनेश्वर भगवंत ही बता सकते है । सरागी और छद्मस्थ जीव, ऐसे मार्ग को, जिनेश्वरो के उपदेश से ही जान सकता है, स्वतन्त्र रूप से नही जान सकता । जिनेश्वरो का बताया हुआ मोक्ष मार्ग, सर्व-तन्त्र स्वतन्त्र है, पूर्व है । जीवों के भेद प्रभेद उनकी विभिन्नता का कारण, सुविस्तृत कर्म सिद्धात, श्रात्मा का स्वरूप बन्ध के कारण, 1 " १२० मुक्ति के उपाय, श्रात्मा के विकास के अनुसार गुण-श्रेणी, उपशम और क्षपक श्रेणी का स्वरूप, कर्म क्षय से प्रकट होने वाली श्रात्मा की अनन्त ज्ञानादि शक्ति का स्वरूप इत्यादि विषयो का प्रतिपादन, ये जिन प्रवचन मे सर्वथा प्रजोड है । बन्ध-मुक्ति के उपायो मे जो वैज्ञानिक पद्धति है, वह सम्यग् विचारवालो के शीघ्र ही समझ मे प्रा सकती है । जिनेन्द्र भगवान् का उपासक, जिनेश्वरों के उपदेश से जानता है कि यह जीव, पुद्गलपक्षी होने से ही अनादिकाल से बन्ध-परम्परा मे उलझता हुआ दुखी हो रहा है । पुद्गल प्रेम ही दुःख का कारण है और इसकी इच्छा का निरोध, मुक्ति का कारण है । विषय कषाय की स्थिति, पर लक्ष के कारण ही है । जितनी मात्रा में पर- लक्ष छूटेगा, उतनी मात्रा मे मनुष्य पवित्र होता जायगा । जिन धर्म ने विरति का उपदेश इसीलिये दिया कि जिससे श्रात्मा, पुद्गल की कैद "
SR No.010468
Book TitleSamyaktva Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1966
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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