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________________ ( आरिया मौन हो रहा. ) जैनी :- मला ! यद तो बताओ कि ईश्वर (स्वतंत्र) खुद अख्तियार दे वा परतंत्र ( पराधीन) अर्थात् वे अख्तियार है. आरिया :- वाहजी वाह ! आपने यह कैसा प्रश्न किया ? ईश्वर के स्वतंत्र होने में कोई किसी प्रकार का सन्देद कर सकता है ? ईश्वर तो स्वतंत्र दी है. जैनी : - ईश्वर किस श्कर्म में स्वतंत्र है ? रियाः - ईश्वर के जी क्या कर्म हु { C या करते हैं ? 1. रिल २ 1 जैनी:- तुम तो ईश्वर के कर्म मान ते हों. · प्रारिया:-- दम ईश्वर के कैसे कर्म मा नते हैं ? जैनी:- तुम ईश्वर को न्यायकारी ( न्याय करने वाला दण्म देने वाला), अपनी
SR No.010467
Book TitleSamyaktva Suryodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherKruparam Kotumal
Publication Year1905
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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