SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २० ४० ४१ ૪૨ ४३ ४४ ४५ ટ્ १७ ૪૮ ४२ ५० ५१ ५२ ५३ ५४ ५५ ५६ ५७ ५८ ५९ 1 विषयाः वीस. विहरमान के नाम ..: चैत्यशब्दका अर्थ साधु तथा ज्ञान नहीं जिनप्रतिमा पूजने के फल सूत्रों में कहे हैं महिया शब्दका अर्थ छीकायाके आरंभ बाबत ( ग ) 2004 CIDE 8008 ... श्रावक सूत्र न पढ़े इसबाबत ढूंढिये हिंसा धर्मी हैं इसबाबत ग्रंथ की पूर्णाहुति । ढूंडक पचविशी सवैय्ये समतिप्रकाश बारह मास जीवदया के निमित्त साधुके वचन आज्ञा सो धर्म है इसबाबत पूजा सो दया है इसबावत प्रवचनके प्रत्यनीकको शिक्षा करने बाबत.... देवगुरुकी यथायोग्य भक्ति करने बाबत .... जिनप्रतिमा जिनसरीखी है इसबाबत ढूंढकमतिका गोशालामती तथा मुसलमानोंके साथ ०१० ००८ ... *** ... *** *** *** मुकाबला २७२ मुंहपर मुहपत्ती बंधी रखनी सो कुलिंग है २७८ देवता जिनप्रतिमा पूजते हैं सो मोक्षके वास्ते है २८१ २८२ *** *** 07.0 .... *** .... ... 412 450 444 ... **** **** .ins 1000 14.0 पृष्ठकाः ... २४१ २४२ २४८ २५१ २५३ २५६ २५८ २६१ ... २६६ २६७ २६९ , २८९ २९४ २९७ २९९ ३०१
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy