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________________ चालीसवां बोल-७३ चोर- मेरा क्या काम है ? राजा-तुम चोर हो, इसीलिए तुम्हारी जरूरत है। चोर-मैं साहूकार हू । कोन मुझे चोर कहता है ? राजा तुम्हारे चोर या साहूकार का अभी निर्णय हो जायगा । तुम्हारे चोर होने की खातिरी मैंने तो पहले से ही कर रखी है। . आखिरकार राजा ने चोर को पकड़ लिया। चोर विचार करने लगा-मुझे पकड़ने वाला कोई मामूली आदमी नही है । राजा ने मुझे पकड़ा है। मुझे सख्त सजा मिलेगी। राजा बोला--अब तुम पकडे जा चुके हो । कहो अब तुम्हे क्या करना है ? , चोर बोला- जो आप कहे, वही करने को तैयार हूँ। राजा--सब से पहले तुम अपनी कन्या का मेरे साथ विवाह कर दो। चोर-~-ठीक है। यह कह कर उसने प्रसन्नतापूर्वक अपनी कन्या राजा को ब्याह दी। राजा ने चोरकन्या से कहा--तुमने मेरे शरीर की रक्षा की थी। अब यह शरीर मैं तुम्हारे सिपुर्द करता है । चोरकन्या बोली--नोथ, आप उदार हैं, इसी से ऐसा कहते है । मैं तो वास्तव मे चोर की कन्या हूँ। मैं आपके सन्मान के योग्य नही । आपने मेरा सन्मान करके मुझ पर उपकार किया है। राजा--अब तुम्हे किसी प्रकार की चिन्ता नही करनी
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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