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________________ ७२-सम्यक्त्वपराक्रम (४) चोर समझ गया-राजा बच गया है और खंभा टुकडे टुकड़े हो गया है। चोर निराश होकर घर लौट आया। उसने अपनी कन्या से कहा-राजा धोखा देकर भाग गया। वह अपने घर की छिपी वाते जान गया है । अव हमे बहुत होशियारी के साथ रहना चाहिए । ___चोरकन्या ने कहा--पिताजी ! जान पड़ता है, अब आपके पापो का घड़ा भर गया है। मडूक ने क्रुद्ध होकर कहा--क्यो अपशकुन की बात मुंह से निकालती है ? चोरकन्या-पाप का अन्त होने मे बुराई क्या है, पिताजी ! लडकी की बात मडूक को बहुत बुरी लगी। फिर भी वह मौन रहा। दूसरे दिन चोर व्यापारी वनकर गखपुर के बाजार में क्रय-विक्रय करने आया । इधर राजा भी वेष बदल कर चोर की फिराक मे शहर में घूमने लगा। घूमता-घूमता राजा उसी दुकान पर आ पहुचा, जहा चोर व्यापारी के रूप मे क्रय-विक्रय कर रहा था। राजा, चोर व्यापारी को देखते ही पहचान गया । राजा ने पूछा-'तुम क्या वेचने आये हो ?' तुम्हारे पास क्या है ? चोर - हमारे पास सभी कुछ है । तुम्हे क्या चाहिए? राजा-भाई, मुझे और कुछ नहीं चाहिए । सिर्फ तुम्हारी आवश्यकता है ।
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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