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________________ ७०-सम्यक्त्वपराक्रम (४) साथ लाया है। वह मेरे व्यवसाय में विघ्न डालता है। किसी उपाय से उसे मार डालना है । पुत्री ने कहा - अापकी आज्ञा के अनुसार सब काम हो जायगा । लडकी तब राजा के पास पहची। बोली--भोजन तैयार है । जीमने चलो। राजा ने मन ही मन मे कहा--भोजन करना तो । चाहिए, मगर भोजन करते समय मावधान रहना होगा। इस समय मैं चोर के घर मे हूं। राजा ने लडकी से कहा-~पहले तुम जीम लो । तुम्द्वारे जीमने के बाद मैं भोजन करूगा । मैं भिखारी ह, फिर भी इतनी सभ्यता जानता हू । जव तक घर वाले न जीम लें, मैं कैसे जीम सकता है। राजा की बात सुनकर लडकी समझगई-यह भिखारी नदी है। दरअसल भिखारी होता तो ऐसा न कहता, वरन् खाने बैठ जाता। चोर की कन्या ने राजा से कहा- अगर तुम सभ्य हो तो भोजन से पहले स्नान करना चाहिए । राजा--अगर यह नियम है तो इसका पालन करना मेरा कर्तव्य है। चोरकन्या राजा को स्नान कराने के लिए कुए पर ले गई । चोरकन्या का यह नियम था कि वह जिसे स्नान कराने कुए पर ले जाती, उसके पैर पकड कर कुए मे फैक देती थी। राजा को कुए मे डालने के लिए उसने राजा के
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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