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________________ चालीसवां बोल-६६ चोर बोला-क्या इस तरह रास्ते में पड़े रहने से तेरा दुख दूर हो जायेगा ? राजा-इस तरह पड़े रहने से दुख दूर नहीं होगा। दुख तो तुम्हारे जसे की सगति से दूर हो सकता है । चोर--तू मेरे साथ चल । मैं तेरा दुःख दूर करूगा। राजा ने चोर के साथ जाना कबूल किया । राजा साथ हो लिया। दोनो एक-दूसरे को मार डालने की बात मे थे, इस कारण दोनो ही सावधान थे। चोर ने चोरी की । धन आदि की दो पेटियां भरी। फिर राजा से कहा--एक पेटी तू उठा ले । पर देखना, भाग मत जाना। राजा--नही, मैं भागू गा क्यो ? चोर-तो ठीक है । चल । आगे चल । मैं तेरे पीछेपीछे चलता है। राजा--तुम्हे कहा जाना है, सो मुझे मालूम नही । अतएव प्रागे तुम चलो । मैं पीछे-पीछे चलूगा । चोर-ठीक है, तू पीछे ही चलना । मगर तू कही भाग न जाय, इसलिए तुझे रस्सी से बाध लेता हूं। चोर ने राजा को रस्सी से बाध लिया। चोर आगेआगे चलने लगा । राजा चोर नही था । फिर भी मडूक चोर ने राजा को चोर की तरह बाध लिया । राजा को साथ लेकर चोर घर आया । मडूक चोर ने अपनी लडकी को पास बुलाकर कहा-मैं एक आदमी को
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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