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________________ उनचालीसवां बोल-५६ एकाग्र भावना प्रगट करनी चाहिए। जब तक दूपरो की सहायता लेने की भावना रहेगी तब तक मन की चचलता वढती ही रहेगी। इसके विपरीत, सहायता लेने का जितना त्याग किया जायेगा और जितने परिमाण मे स्वावलबी होने का प्रयत्न किया जायेगा, उतना और उसी परिमाण मे श्रात्मा स्वतन्त्र और स्वाधीन बनेगा । ज्ञानीजनो का कथन है कि साधनो का जितना त्याग किया जायेगा, त्याग उतना ही सफल होगा । सुख-साधनो का त्याग करने से बधन ढीले होगे और जीवन मे निस्पृहता आएगी इससे वितरीत सुख-साधन मे जितनी वृद्धि की जायेगी, उतने ही परिमाण मे वधन दृढ होगे । परिणाम स्वरूप जीवन मे परतन्त्रता का प्रवेश होगा। आज एक दूसरे पर जो आपेक्ष किये जाते है, उसका प्रधान कारण भी सावनो की वृद्धि है। सुख-साधनो की वृद्धि के साथ ससार मे क्लेश की भी वृद्धि हुई है। लोगो को समाचार-पत्र पढन का इतना चस्का है कि कुछ लोग भोजन किये बिना चाहे रह जाएगे, पर समाचार-पत्र पढे बिना नहीं रह सकते । समाचार-पत्र पढने से कलह बढा है या घटा है ? इस प्रश्न का उत्तर स्पष्ट ही है कि समाचारपत्रो के द्वारा कलह मे वृद्धि हुई है और चचलता भी बढ़ मन की एकाग्रता अत्यावश्यक है । मैंन ऐकान किये बिना शान्ति नही मिल सकती। अगर एक रात नींद में आये तो तबीयत कितनी खराब हो जाती है ? निद्रा लेना मन की एकाग्रता का विकृत उदाहरण है । मगर निद्रा की
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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