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________________ ५२-सम्यक्त्वपराक्रम (४) को क्या लाभ होता है ? उत्तर - सहायता का त्याग करने से जीवात्मा एकस्वभाव को प्राप्त होता है और एकत्वभाव को प्राप्त जीव अल्पकषायी, अल्पक्लेशी तथा अल्पभापी होकर सयम, सवर तथा समाधि मे अधिक दृढ होता है ।। व्याख्यान सहाय का साधारण अर्थ है--मदद । किसी आत्मा मे जब दूसरे के बल पर आश्रित न रहने की और अपने ही बल पर खडे रहने की भावना उत्पन्न होती है तब वह आत्मा दूसरे की सहायता का त्याग करके स्वाश्रयी बनता है। इस सूत्र मे परावलम्बन का त्याग करके स्वावलम्बी बनने की शिक्षा दी गई है। यह शिक्षा साधु और श्रावक को ही ग्रहण करने योग्य नही वरन् आत्मकल्याण के प्रत्येक अभिलापी के लिए यह समझने और ग्रहण करने योग्य है । भगवान ने साधओ के लिए कहा है--साधओ को सदैव यह भावना करनी चाहिए कि मैं अपने ही बल पर श्राश्रित रहूगा, दूसरो की सहायता नही लू गा ।' साधुओ को यह भावना ही नही करना चाहिए बल्कि शक्ति का सचय करके भावना को सफल बनाने का भी प्रयत्न करना चाहिए । कल्याण के इच्छुक साधु अपनी शक्ति देखकर दूसरो की सहायता का त्याग करते है और स्वावलम्बी बनते हैं । दूसरो की सहायता का त्याग करने से और स्वावलम्बी बनने से जीवात्मा को क्या लाभ होता है, इस विषय
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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