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________________ अड़तीसवां बोल-४५ रूक्ष नही, चिकना नही, स्त्री नही, पुरुष नही, नपु सक नही। वह ज्ञाता है, विज्ञाता है। उसकी कोई उपमा नही है । वह अरूपी सत्ता है । वह अनिर्वचनीय है शब्दातीत है । भावार्थ यह है कि जिसमे वर्ण, रस, गंध और स्पर्श की पर्याय नही होती, वह सिद्ध है। इससे यह स्पष्ट विदित हो जाता है कि वर्ण, रस, गध तथा स्पर्श का सम्बन्ध शरीर के ही साथ है । अशरीर हो जाने के बाद वर्ण आदि का सम्बन्ध नही रहता । यहां यह प्रश्न किया जा सकता है कि सिद्धात्मा मे अगर वर्ण आदि कुछ भी नही है तो वह किस प्रकार के है ? इस प्रश्नकर्ता से यह प्रश्न करना चाहिए कि जिस वस्तु में वर्ण, रस, गन्ध तथा स्पर्श नही होते, वह वस्तु कैमी हाती है ? इस प्रश्न का जो उत्तर हो, वही उत्तर प्रश्नकर्ता के प्रश्न का समझना चाहिए। उदयपुर में एक वकील के साथ मेरा वार्तालाप हुआ या। वकील आत्मा को प्रत्यक्ष बताने के लिये कहते थे । मैंने उनसे कहा-'आप अग्रेजी पढे है ? उन्होने उत्तर दिया 'हा, मैं अगरेजी पढा हू ।' तब मैंने उनसे कहा- पाप अपने मस्तिष्क मे से अग्ने जी निकालकर नही बता सकते तो फिर अरूपी आत्मा किस प्रकार बतलाया जा सकता है ? शास्त्र मे आत्मा के विषय मे कहा है तक्का जत्थ न विज्जइ, मई तत्थ न गाहिया । ___ अर्थात-आत्मा की सिद्धि के लिए तर्क काम नही आते और बुद्धि की भी आत्मा तक पहुच नही है ।
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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