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________________ ३४- सम्यक्त्वपराक्रम ( ४ ) तो अवश्य ग्रहण करने योग्य है । यह शिक्षा जीवन को उद्यमशील बनाने की है । कहा भी है: Padm माखो होए मध कीधु, न खाधुं न दान दीधुं । तो चेतावु तोने रे ॥ लूटनारे लूटी लीघुरे, पामर प्राणी चेते मधुमक्खिया मेहनत करके मधु तैयार करती है और उसका संग्रह करती हैं । वे न स्वय मधु खाती हैं और न किसी को देती ही हैं । फिर क्या उनका बनाया मधु पडा रहता है ? नही । लुटेरे लोग आते हैं और उनके परिश्रमपूर्वक तैयार किये मधु को लूट ले जाते है । बहुत से लोग प्रसन्नता के साथ मधु खाते हैं परन्तु उन्हें यह पता नही होता कि मधु प्राता कहा से है ? वे तो मधुमक्खियों के परिश्रम से संगृहीत मधु लूट कर अपने शरीर को हृष्टपुष्ट बनाते है । किन्तु जिस प्रकार वे दूसरों की चीज लूटकर खाते है, उसी प्रकार दूसरे लोग उन्हें नही लूट ले जाए गे, इसका क्या विश्वास है ? कहा भी है - / काल वैताल की धाक तिहुं लोक मे, देव दानव घरे रोल घाले । अर्थात् कराल काल सव के मस्तक पर घूम रहा है । इस भयकर काल के पजे मे से कोई छूट नही सकता । इस प्रकार जब सभी लोग काल के गाल मे फसे हैं तो फिर अभिमान किस वात का करते हैं ? श्रभिमान करने से आखिर पश्चात्ताप करने का ही अवसर आता है यह बात ध्यान मे रखकर अभिमान का त्याग करना चाहिए और मानवशरीर का सदुपयोग करना चाहिए ।
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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