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________________ बहत्तर-तेहत्तरवां बोल-३७१ मार्गदर्शक मार्ग प्रदर्शित कर देता है, मगर उस मार्ग पर चलने का काम तो प्रवासी को ही करना पड़ता है। केवलज्ञानी महापुरुषो ने मोक्ष का मार्ग हमे बतलाया है । उस पर चलने का पुरुषार्थ हमे ही करना पड़ेगा । पुरुषार्थ किये बिना सिद्धि नही मिल सकती। भगवान् महावीर का सिद्धान्त ही उत्थान, बल, वीर्य, पुरुषार्थ और पराक्रम का है। श्री उपासकदशागसूत्र के सकडालपुत्र के अध्ययन में इसी सिद्धान्त का महत्व प्रदर्शित किया गया है । गोशालक का मत यह है कि उत्थान आदि कुछ भी नहीं है, जो होनहार है वही होता है । इस मत के विरुद्ध भगवान् का सिद्धान्त यह है कि उत्थान, बल, वीर्य, पुरुषाकार तथा पराक्रम आदि द्वारा आत्मा सिद्ध होता है । संक्षेप में, भगवान् महावीर पुरुषार्थवादी थे और गोशालक नियतिवादी था । एक बार भगवान् महावीर ने सकडालपुत्र से कहाप्रात्मा उत्थान, बल, वीर्य, पुरुषाकार तथा पराक्रम से सिद्ध होता है। इस कथन के उत्तर मे सकडालपुत्र ने कहा कि उत्थान आदि द्वारा आत्मा सिद्ध नही होता वरन् होने वाला हो तो हो जाता है। सकडालपुत्र पहले गोशालक का श्रावक था । इस कारण उसने गोशालक के मत का समर्थन किया। एक दिन सकडालपुत्र ने अपनी दुकान में से मिट्टी के बर्तन बाहर निकाले और धूप मे सुखा दिये । तब भगवान् महावीर ने उससे कहा-हे सकडाल ! यह मिट्टी के बर्तन किस तरह बने हैं ?
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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