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________________ ३३८-सम्यक्त्वपराक्रम (५) का क्या पार होगा? मुझे नही मालूम था कि आप इस प्रकार पाप का पैसा पाकर आनन्द मान रहे है।। वकील-हमारा धन्धा ही ऐसा है । ऐसा न करें तो काम कैसे चले ? पत्नी-आप सत्य को असत्य बनाते हैं, इसके बदले सत्य की सत्य बनाने की ही वकालत क्यो नही करते ? सच्चा मुकदमा ही लें तो क्या आपका काम नही चलेगा? मैं चाहती हूं कि आप प्रतिज्ञा ले ले कि भविष्य मे कोई भी झूठा मुकदमा आप हाथ मे नही लेंगे । पत्नी की बात वकील के गले उतर गई । वकील ने झूठा मुकदमा न लेने को प्रतिज्ञा की। उसने अपने मुव. क्किल से कहा-आप यह रुपया ले जाइए और किसी प्रकार अपने प्रतिवादी को सन्तुष्ट कीजिए । दरअसल आज उसे कितना दुख हो रहा होगा ? आज मैं अपने वाक्चातुर्य से न्यायाधीश के सामने झूठे को सच्चा और सच्चे को भूठा सिद्ध करने मे सफल भी हो जाऊँ किन्तु जब परलोक में मुझे पुण्य-पाप का हिसाब देना पड़ेगा तब क्या उत्तर दूंगा? कहा भी है . होयगो हिसाब तब मुख से न आवे ज्वाब, 'सुन्दर' कहत लेखा लेगो राई-राई को ।। वकील की बात सुनकर मुवक्किल भी चकित रह गया और कहने लगा- वास्तव मे वकील-पत्नी एक सत्यमूर्ति है, जिसने पचास हजार को भी ठोकर लगा दी। इस घटना के आधार पर तुम किसे महान् मानोगे? स्त्री को या पुरुष को ? हमारे लिए तो स्त्री-पुरुष का कोई
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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