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________________ ३३६-सम्यक्त्वपराक्रम (५) शब्दार्थ प्रश्न-भते ! माया को जीतने से जीवात्मा को श्या लाभ होता है ? उत्तर-गौतम | माया को जीतने से जीव को आर्जव (सरलता) की प्राप्ति होती है और माया से वेदे जाने . वाले कर्मों का बन्ध नहीं होता और पहले बन्धे हुए कर्मों की निर्जरा होती है। व्याख्यान जो माया को जीतता है वही सरलता रख सकता है और जो सरलता रखता है वही माया को जीत सकता है । भावो की वक्रता ही माया कहलाती है , शास्त्र में कहा है : मायो मिच्छादिट्ठी, अमायी सम्मादिट्ठी । अर्थात्- कपट ही मिथ्यात्व है और सरलता ही सम्यक्त्व है । यही बात ध्यान मे रखकर माया का त्याग करना चाहिए । माया का त्याग करने से ही आत्मा मे सरलता आयेगी और जब सरलता आएगी- माया न रह जाएगी-तब प्रात्मा का कल्याण होने मे देरी नही लगेगी। __ ससार मे प्राय. अनेक लोग जान-बूझकर मायाजाल मे फँसते हैं । जो मायाचार करना जानता है उसे आज 'पोलिटिकल' जैसा सुन्दर विशेषण लगाया जाता है । मगर शास्त्र मे मायाचारी मनुष्य की निन्दा ही की गई है । मायाचारी अपनी माया से भले ही दूसरो को ठगता हो पर
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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