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________________ उनहत्तरवां बोल माया-विजय जीवन को निष्कपट बनाने के लिए कषाय का त्याग करना आवश्यक है । क्रोध, मान, माया और लोभ, यह चार कषाय हैं । इन चारों कषायों से आत्मा का पतन होता है । आत्मा का उत्थान करने के लिए चारो कषायों पर विजय प्राप्त करना आवश्यक है । क्रोध पर विजय प्राप्त करने से जीव को क्षमागुण की प्राप्ति होती है और मान को जीतने से नम्रता-गुण को। क्रोधविजय और मानविजय से होने वाले लाभों पर पहले विस्तृत विवेचन किया जा चुका है । अब गौतम स्वामी यह प्रश्न करते हैं कि माया को जीतने से जोव को क्या लाभ होता है ? मूलपाठ प्रश्न - मायाविजएणं भते ! जीवे कि जणयइ ? उत्तर-मायाविजएण अज्जवं जणयह, मायावेयणिज्ज कम्म न बंधइ, पुन्वबद्धं च निज्जरेइ ।। ६६ ।।
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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