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________________ साठ से छांसठवां बोल-३११ राजा जब भोजन करने बैठा तो उस आदमी ने वही पानी पीने के लिए रख दिया। पानी पीकर राजा ने कहाअरे. यह पानी तो बहुत मीठा है । यह कहा से भर लाया है ? आदमी ने उत्तर दिया- 'यह पानी प्रधानजी ने भेजा है।' राजा ने प्रधान को उसी समय बुलवाकर कहा'तुम इतना मीठा पानी, पीते हो और मेरे लिए आज यह भिजवाया है ।' प्रधान ने कहा -' इस पानी मे ऐसा क्या है ? यह तो वस्तु का स्वभाव ही है कि वह अनिष्ट के इष्ट और इष्ट से अनिष्ट हो जाती है।। राजा ने कहा- फिर वही बात करने लगे ? प्रधान मैं जो कहता हूं, ठीक कहता हूं । यह पानी उसी खाई का पानी है, जिसकी बदबू के मारे आपने नाक दबा लिया था। राजा- वह बदबू वाला पानी इतना मीठा कैसे बन सकता है। प्रधान-महाराज ! मैं प्रयोग द्वारा आपके सामने भी उस पानी को ऐसा मीठा बना सकता है । आखिर राजा ने खाई का दुर्गन्ध वाला पानी मंगवाया । प्रधान से उसे शुद्ध और सुगन्धित बन ने के लिए कहा । प्रधान ने पहने को तरह उस पानी को परिष्कृत कर दिया। इस घटना से राजा को विश्वास हो गया कि वस्तु मे परिवर्तन हो सकता है । राजा ने प्रधान के सिद्धांत को स्वीकार करके कहा - प्रधानजी ! आप धर्मज्ञ और विचारशील हैं । अतः मुझे केवली प्ररूपित धर्म सुनाइए । सुबुद्धि प्रधान श्रावक था और धर्मतत्त्व का ज्ञाता था ।
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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