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________________ २८०-सम्यक्त्वपराक्रम (५) तरह भाव, कर्ता और करण को प्रधानता देकर ज्ञान की तीन प्रकार से व्याख्या की जाती है । परन्तु शास्त्रकार कहते हैं कि यहा जो ज्ञान शब्द का प्रयोग किया गया है उसी मे तीनो पदार्थ गतार्थ हो जाते हैं । ज्ञान के तीनो अर्थ वस्तुस्वरूप समझने के लिए हैं-- एक दूसरे का खडन करने के लिए नही। जिस प्रकार सूत्र साहित्य मे वस्तुस्वरूप समझने के लिए सात नयों का वर्णन किया गया है। यह सातो नय एक दूसरे का विराध नहीं करते किन्तु वस्तुस्वरूप समझने में सहायता पहुचाते हैं। इसी प्रकार ज्ञान की तीन व्याख्याए एक दूसरे का विरोध नहीं करती किन्तु वस्तुस्वरूप समझने में सहायता देती हैं । यद्यपि सामान्यतया सातो नयो मे भेद है, परन्तु नयभेद एक नय द्वारा दूसरे नय का खडन करने के लिए नही है। इसी प्रकार ज्ञान को तीनो व्याख्याएं वस्तु-स्वरूप समझने के लिए है--आपस के खण्डन के लिए नही । अगर एक नय दूसरे का खडन करे तो वह दुर्नय कहलाता है, उसी प्रकार ज्ञान की व्याख्याए भी अगर एक दूसरी का विरोध करे तो वह भी मिथ्या हो जाएगी। कहने का तात्पर्य यह है कि वस्तु का स्वरूप सरलतापूर्वक समझने के लिए ज्ञान आदि की विभिन्न व्याख्याए की जाती हैं । हमे भी ज्ञान की व्याख्याओ का उपयोग वस्तु-स्वरूप समझने में करना चाहिए । क्लेशोत्पादक वादविवाद करने मे ज्ञान की व्याख्याओ का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। अब मूल प्रश्न पर विचार करें । श्रुतज्ञान प्राप्त करने
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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