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________________ अड़तालीसवां बोल ऋजुता सिद्धान्त-सागर मे अनेक अनमोल मोती भरे हैं। सच्चा जानकार जौहरी ही मोती की परख कर सकता है और ठीक कीमत प्रांक सकता है । मोतियों की माला पहन कर लोग फूले नहीं समाते परन्तु नश्वर मोतियो की माला से जीवन का वास्तविक कल्याण नही हो सकता । वीरवाणी रूपी अनमोल मोतियो की माला अपने गले मे धारण करने वाले ही अपने जीवन को कल्याणमय बना सकते हैं, साथ ही पर का भी कल्याण कर सकते है । वास्तव में वीर वाणी ससार-सागर से पार उतारने वाली है और इसी कारण वीरवाणी को जगदुद्धारिणी कहते हैं । श्री उत्तराध्ययनसूत्र महावीर की अन्तिम वाणी है । इस अन्तिम वाणी मे श्रमणनायक महावीर भगवान के आत्मानुभव का निचोड सगृहीत है । उत्तराध्ययन के २६वे अध्ययन में महावीर भगवान् और गौतम गणधर के बीच हुए प्रश्नोत्तर का सक्षिप्त, सारगभित तथा सुन्दर सूत्र के रूप मे निरूपण किया गया है । इस अध्ययन मे आत्मिक गुणो का विकास करने वाले ७३ सोपान बनाए गए हैं । इन ७३
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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