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________________ १६४-सम्यक्त्वपराक्रम (४) तो चितवे हम प्रातमराम, प्रखंड अबाधित ज्ञान भंडारो। देह विनाशिक सो हम तो नहि, शुद्ध चिदानन्द रूप हमारो॥ खधक मुनि ने इस प्रकार की उच्च भावना भाते हुए कैवलज्ञान प्राप्त किया । जिस उद्देश्य के लिए उन्होंने ससार त्याग किया था, वह आत्मश्रेय-साधन का उद्देश्य सिद्ध करके मोक्ष प्राप्त किया । इस प्रकार खधक मुनि सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो गए। वह नौकर, जिसने मुनि का वध किया था, मुनि की खाल लेकर राजा के सामने उपस्थित हुआ । राजा ने मुनि की खाल उतार लाने की आज्ञा तो अवश्य दो थी, परन्तु जब मुनि के शरीर की खाल उसकी दष्टि के सामने आई तो उसे देखकर वह एक बार काप उठा । कहने लगा-- हाय | मैंने यह कैसा कुकृत्य किया कि एक महात्मा के शरीर की खाल उतरवा ली | नौकर ने महात्मा की धीरता, वीरता और क्षमा की सब बात कही। नौकर की बातें सुनकर राजा पश्चात्ताप करने लगा। उसे इतना सताप हुआ कि आखो से आँपुत्रो को धारा बहने लगी। जब रानी को विदित हुआ कि किसी मनुष्य की खाल उतरवाई गई है और रानो ने उसे आकर प्रत्यक्ष देखा तो वह भी रुदन करने लगो । इसी बीच एक चील राजा के महल पर उडती-उडती आई । उसने रक्त से जित मुनि की मुखवस्त्रिका या दूसरा कोई वस्त्र उठा लिया था। मगर उस चीज मे उसे कोई स्वाद नहीं आया । अतएव उसने वह वस्त्र राजा के महल पर ही छोड़ दिया और वह उड गई । खून से लथपथ वह वस्त्र रानी को नजर आ गया। रानी ने उसी समय वह वस्त्र मगवा कर देखा तो जान पडा कि यह वस्त्र किसी
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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