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________________ ८ सम्यक्त्वपराक्रम (४) आदत डाले तो शरीर रोगी न बने और और न डाक्टर की शरण लेना पडे । सिर्फ शरीर को स्वस्थ रखने के उद्देश्य मे किये जाने वाले उपवास परिपूर्ण नहीं कहे जा सकते । ऐसे उपवास से शारीरिक लाभ होता है परन्तु सच्चा उपवास तो वही है जो आत्मा तथा परमात्मा का साक्षात्कार करने के लिए किया गया हो । उपवास की व्याख्या करते हुए कहा गया है-'उप समीपे वसतीति उपवास ।' अर्थात आत्मा को परमात्मा के समीप पहुचाने के लिए आत्मध्यान करना और आत्मचिन्तन करने के लिए आहार का त्याग करके जीने की आशा का भी त्याग कर देना ही सच्चा उपवास है। उपवाम तो परमात्मा के पास पहुचने का एक मार्ग है । इस प्रकार सच्चा उपवास करने से शरीर-स्वास्थ्य का आनुषगिक लाभ तो होगा ही, परन्तु उपवास का असली प्रयोजन-परमात्मा के निकट पहचना भी सिद्ध होगा। जैसे पनिहारी अपने घर के लिए पडे में पानी भर लाती है और इस कारण वह शकुनवनी भी कहलाती है, उसी प्रकार परमात्मा के शरण मे जाने के लिए किये गए उपवास से आत्मिक लाभ के साथ शारीरिक लाभ भी होता है । उपवास करने से परमात्मा के शरण मे किस प्रकार जा सकते हैं तथा परमात्मा के शरण में जाने के लिए आत्मा को क्या करना चाहिए, इम सम्बन्ध में गीता में कहा है: विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः । रसवर्ज रसोऽप्यस्य परं दृष्टवा निवर्तते ॥ अर्थात् निराहर रहने से विपयरूपी पक्षी तो उड
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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