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________________ छयालीसा बोल-१५३ है। वास्तव में जो मनुष्य काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर आदि विकारो पर विजय पा लेता है, वह महात्मामहापुरुष है। हमने क्रोध को जीता है या नहीं, यह बात कैसे मालूम हो ? कितने ही लोग ऊपर से तो शान्त तथा क्षमाशील प्रनीत होते हैं किन्तु ऊपर से शान्त रहने मात्र से ही यह नहीं कहा जा सकता कि उन्होने क्रोध को जीत लिया है। जब प्रात्मा का स्वरूप समझ मे आ जाये, तभी मानना चाहिए कि क्रोध काबू मे आ गया है क्रोध को जीत लेने के बाद आत्मा शान्त तथा शीतल बन जाता है । क्रोध किम प्रकार जीता जा सकता है, यह बात महाभारत की एक कथा द्वारा समझाने का प्रयत्न किया जाता है सौ कौरव और पाच पाडव एक ही जगह और एक ही प्राचार्य से अभ्यास करते थे । सब राजकुमारो मे युधिष्ठिर पढने मे मन्द गिने जाते थे । शिक्षक युधिष्ठिर पर बहुत नाराज भी होते थे और उपालभ देते थे - तु सब राजकुमारो मे बड़ा है, भविष्य में राज्याधिकारी होने वाला है, फिर पढ़ने मे दत्तचित्त न होना क्या तुम्हे शोभा देता है ? गुरु का यह उपालभ युधिष्ठिर नम्रतापूर्वक सहन कर लेते थे और शिष्टतापूर्वक उत्तर देते थे कि आपकी तो मुझ पर कृपा है परन्तु मेरी बुद्धि मन्द है । अतएव मुझे याद नही रहता । गुरु ने कहा अगर तुम बरावर अभ्यास नही करोगे तो मुझे उपालभ मिलेगा । मुझे उपालभ से बचाने के लिए अभ्यास करो तो अच्छा है । युधिष्ठिर बोले-आप उपालभ के पात्र नही बनेगे। मैं पढता नहीं हू तो इसमे आपका क्या दोष है २ दोष तो मेरो मन्द बुद्धि का है और इसके
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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