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________________ १३४ सम्यक्त्वपराक्रम (४) और अप्रामाणिक व्यवहार करते हैं । तो क्या असत्य भाषण करना, चोरी करना और अप्रामाणिक रहना ही महाजनो का मार्ग हाना चाहिए ? इमी प्रकार अविकाश लोग भोगी हैं, त्यागी नही, तो क्या भोगी बनना ही महाजनो का मार्ग है ? महाजन कौन है ? इ7 बात का निर्णय करने के लिये अगर ब्रह्मपुगण मे ब्रह्मा का चारित्र देखा जाये तो उसमे वडी ही भयकरता दिखाई देती है । ब्रह्मा अपनो हो पुत्री पर मुग्ध हो गया था, यह भी उल्लेख पाया जाता है । अगर विष्णु का स्वरूप समझने के लिए विष्णुपुराण देखा जाये तो उसमे विष्णु की लीला का ऐसा वणन पाया जाता है कि उनकी लीला के मार्ग को यदि महाजन का मार्ग मान लिया जाये तो वैसी लीला करने वाला मनुष्य और अधिक पतित हो जायेगा । शिवचरित पर दष्टिपात किया जाये तो शिवपुराण मे शिव को श्मशानवासी कहा है । तो शिव का अनुकरण करके क्या सभी लोग उमशानवासी बन जाए ? क्या यह सभव है ? महाजन का मार्ग तो ऐसा सुगम होना चाहिए कि इमे सभी लोग सरलतापूर्वक अपना सकें । अतएव यहा यह प्रश्न उपस्थित होता है कि किम व्यक्ति द्वारा निर्दिष्ट मार्ग को महाजन का मार्ग समझा जाये ? इस प्रश्न का निश्चयात्मके उत्तर यही हो सकता है कि जिस मार्ग पर चलने से बहु-जनसमाज का सच्चा कल्याण होता हो वही महाजन का मार्ग है । असत्य या अन्याय को अनेक लोगो ने भले हो अपनाया हो परन्तु वह मार्ग जनसमुदाय के लिए कल्याणकारी नहीं हो सकता। इसलिए जिस मार्ग पर चलने से जनता का कल्याण होता हो वही
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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