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________________ पैतालीसवां बोल वीतरागता सर्वगुणसम्पन्नता शब्द आज सस्ता हो गया जान पड़ता है । आज चाहे जिम साधारण मनुष्य के लिए भी 'आप सर्वगुण सम्पन्न हैं ऐसा कहा जाता है । परन्तु इस शब्द की महत्ता देखते हुए मालूम होता है यह शब्द चाहे जिसके लिए प्रयोग करने योग्य नही है । जो वास्तव मे 'सर्वगुणसम्पन्न' बन जाता है, उस मनुष्य के लिए फिर कुछ भी करना शेप नही रह जाता । जो वास्तव मे सर्वगुणसम्पन्न बन जाता है, वह वीतराग बन जाता है । और इसी कारण सर्वगुणसम्पन्नता के अनन्तर गौतम स्वामी ने भगवान महावीर से वीतरागता के विषय मे प्रश्न किया है । मूलपाठ प्रश्न-वीयरागयाए णं भते ! जीवे कि जणयइ ? उत्तर-वीयरागयाए ण नेहासु बधणाणि य, तण्हासु घंधणाणि य, वोच्छिदिय मणण्णामणुण्णेसु सद्द-फरिस-रूवरस-गांधेसु चेव विरज्जइ । शब्दार्थ प्रश्न--भगवन् ! वीतरागता से जीव को क्या लाभ
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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