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________________ चवालीसवां बोल - १२६ सहने पडते हैं परन्तु वे दुख आये कहां से हैं । मन में सकल्प होने से ही तो वे उत्पन्न हुए हैं । अतएव मन मे खराब सकल्पो को स्थान नही देना चाहिए । मन में से असत् सकल्पो को दूर करके मन को परमात्मा के ध्यान में पिरो देना चाहिए । ऐसा करने से दुःख के सस्कार ही समूल नष्ट हो जाए गे । जब सस्कार ही समूल नष्ट हो जाए गे तो फिर दुःख कहा से उत्पन्न होगा ? बीज के जल जाने पर वृक्ष किस प्रकार पैदा हो सकता है ? इस प्रकार सेवा का फल परम्परा से मिलता है । जो समस्त दुखो से मुक्त होना चाहता होगा वही वैयावृत्य- सेवा करेगा । सेवाधर्म स्वीकार करने से शाश्वत सुख की उप'लब्धि होती है । सेवाधर्म का महत्व समझकर अपना जीवन सेवामय बनाओ और सर्व गुणो को प्राप्त करो। इसी मे स्व-पर कल्याण है ।
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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