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________________ '६८-सम्यक्त्वपराक्रम (४) को भी सयम में स्थिर रख सके । स्थविरकल्पी और जिनकल्पी मे क्या अन्तर है ? यह बात एक उदाहरण द्वारा समझाने का प्रयत्न करता है। कल्पना कीजिए, एक गाय बछडा वाली है और दूसरी विना बछडे की है । कदाचित् वाघ दोनो पर हमला करे तो विना बछडे की गाय तो पूछ ऊ ची उठाकर भाग जाती है, मगर बछडा वाली गाय को तो अपनी और अपने बछडे की रक्षा करनी पड़ती है। वह गाय वाघ से अपने बछडे की रक्षा करती है और जव वाघ दूर चला जाता है तो बछडे को मुह के आगे करके चलती है । बछडे को साथ ले चलने के कारण गाय की गति धीमी हो जाना स्वाभाविक है । ऐसा होने पर भी यह ससार केवल बछडा वाली या केवल विना बछडे की गायो से ही नहीं चल सकता । ससार मे दोनो प्रकार की गायों की अावश्यकता है । इसी प्रकार साधु तो जिनकल्पी भी हैं और स्थविरकल्पी भी है, मगर दोनो प्रकार प्रकार के इन साधुओ मे एक जिनकल्पी सिर्फ अपनी ही आत्मा का कल्याण करते है और दूसरे स्थविरकल्पी अपने साथ दूसरो का भी कल्याण करते है। जिनमे शक्ति होती है वे वन में जाकर नग्न रह सकते हैं और अछिद्र पाणी हो तो कर-पात्र मे किसी एक गृहस्थ के घर से आहार लेकर आहार कर सकते है। इस प्रकार से आत्मकल्याण करने वालो के लिये मोक्ष भी समीप ही है । परन्तु जिनमे इतनी शक्ति नहीं होती वे स्थविरकल्पी होकर आत्मकल्याण के साथ संमार का भी सुधार करते हए विचरते हैं । अतएव जिनकल्पी की अपेक्षा स्थविरकल्पी को मोक्ष प्राप्त करने में विलम्ब होना स्वाभाविक है । जिनकल्पी और स्थविरकल्पी
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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