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________________ । बयालीसवां बोल-१७ से अधिक खर्च नही कर सकती । पहली पुत्रवधू पहले से ही सोच-समझकर मर्यादापूर्वक काम करती थी, अतएव उसे यह छूट दी गई कि वह इच्छानुसार खर्च कर सकती है । सेठ ने इस प्रकार मर्यादा बांधकर क्या कुछ अनुचित किया ? सेठ को एक पुत्रवधू के लिए मर्यादा बाधना आवश्यक प्रतीत हुआ तो उसने मर्यादा बांध दी और दूसरी के लिए मर्यादा बाधना आवश्यक प्रतात नही हुआ तो मर्यादा नही बाधी। सेठ के हृदय में किसी के प्रति पक्षपात नही है फिर भी अगर उसे कोई पक्षपाती कहता है तो कहने वाले की भूल है। इसी प्रकार भगवान् महावीर ने और भगवान् पार्श्वनाथ ने एक ही मोक्ष का मार्ग बतलाया है, परन्तु दोनो ने अपने-अपने साधुओ के लिए आवश्यकतानुसार कल्पमर्यादा बाघी थी । भगवान् पार्श्वनाथ के साधुनो को अस्थितकल्पी कहा गया है और भगवान महावीर के साधु स्थितकल्पी कहलाते हैं । भगवान् पाश्र्वनाथ ने और भगवान् महावीर ने काल आदि का विचार करके ही कल्पमर्यादा बांधी थी। मर्यादा वाधने मे पक्षपात करने का कोई कारण न था । __भगवान् ने जो मर्यादा बाधी है, उसका शक्ति के अनुसार अवश्य पालन करना चाहिए । अपने में शक्ति हो और वन मे बिना वस्त्र धारण किये रहा जा सकता हो तो ऐसी अवस्था मे जिनकल्पी रहना उचित है । अगर शक्ति न हो तो स्थविरकल्प का पालन करना चाहिए । स्थविरकल्प का सामान्य अर्थ यह है कि साधु स्वय सयम में स्थिर रहे और दूसरो को भी सयम मे स्थिर रखे। स्थविरकल्पी का आचार-विचार और आहार-विहारही ऐसा होना चाहिए कि जिसमें वह स्वय सयम मे स्थिर रह सके और दूसरों
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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