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________________ बत्तीसवां बोल - १७३ श्रीकृष्ण ने कहा- तो फिर मेरे लिए नौका क्यो नही भेजी ? पाण्डव अमरकका के राजा पद्मनाभ के विजेना में कितना पराक्रम है, यही देखने के लिए नौका नहीं भेजी थी । पाण्डवो का यह उत्तर सुनकर श्रीकृष्ण अत्यन्त क्रुद्ध हुए और कहने लगे तुम्हारे भीतर इतनी बडी घृष्टता है ! जब तुम लोग पद्मनाभ से हारकर लौटे थे और मैंने पद्मनाभ को हराया था, तब क्या तुमने मेरा पराक्रम नही देखा था ? तुम लोग मेरे राज्य मे रहने योग्य ही नही हो, अतएव मेरे राज्य मे से निकल जाओ । इस प्रकार कृष्ण को कुपित हुआ देख पाण्डवो को अत्यन्त पश्चात्ताप हुग्रा । माता कुन्ती आदि के प्रयत्न से श्रीकृष्ण की क्रोधाग्नि शांत हुई । कहने का आशय यह है कि जिन्होने पूर आई नदी पार की उनमे कितना अधिक वल होगा ? इसी प्रकार विषयभोग की दुस्तर नदी को जो महापुरुष पार कर सकें, वे कितने बडे वीर होगे ? यह तो विषयसुख पर विजय प्राप्त करने की बात हुई । परन्तु यहा यह देखना है कि विषयसुख से पराड, मुख होने का फल क्या है ? विषयसुखो की ओर चित्त आकृष्ट न होना ही विषयसुखो से पराड मुख होना कहलाता है । विषयसुख से परामुख होने का ढोग करना दूसरी बात है । किन्तु अगर सम्यक् प्रकार से कोई विषयसुख से विमुख हो जाये तो विषयो के प्रति उसके चित्त का आकृष्ट न होना स्वाभाविक है । विषयसुख से विमुख हुआ पुरुष अपने
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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