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________________ अट्ठाईसवा बोल-१०६ उपदेश को आवश्यकता ही न रहती। परन्तु हम लोग अभी , अपूर्ण हैं और इसीलिए हमे उपदेश सुनने-समझने को आवश्यकता है। श्री आच रागसूत्र में कहा है - जिसने पूर्णता . प्राप्त कर लो उसे उपदेश सुनने को आवश्यकता नही रहतो। अपन अभी अपूर्ण हैं, अत उपदेश सुनकर हमे क्या करना चाहिए, इस बात का गहरा विचार करना आवश्यक है। ज्ञानी और अज्ञानी की रीति-नीति मे बहुत ही भेद होता है । यह बात सामान्य उद हरण से समझाता हू । मान लीजिए, किसी वृक्ष पर एक ओर वन्दर बेठा है और दूसरी तरफ एक पक्षी बैठा है। इतने मे तेज तूफान आया और वक्ष उखड कर गिर पडा ऐसी स्थिति मे दु ख किसे होगा? बन्दर को या पक्षी को ? पक्षी तो अपने पखो के द्वारा ऊपर उड जायेगा परन्तु बेचारा बन्दर तो वृक्ष के नीचे कुचल जाएगा । यही वात ज्ञानी और अज्ञानी को लागू होती है । ससाररूपी वृक्ष पर ज्ञानी और अज्ञानी दोनों प्रकार के लोग बैठे हैं । परन्तु ससार वृक्ष नीचे गिरेगा तो ज्ञानीपुरुष पक्षी की भाति उर्ध्वगमन करेगे और अज्ञानी उसी ससारवृक्ष के नीचे दब कर दुखी हो जाएंगे । । , इस कथन से यह सार लेना है कि हम शरीर मे रहते, हुए भी किस प्रकार निर्लप रह सकते हैं । यह शरीर तो एक, दिन छूटने को ही है । मरना सभी को है। परन्तु पक्षी के समान ऊर्ध्वगति करना ठीक है या वन्दर के समान पतित होना ठीक है, इस बात का विचार करो। कहोगे तो यही कि ऐसे अवसर पर पक्षी को तरह ऊर्ध्वगति करना ही योग्य है, परन्तु पक्षी को पख उसी समय नही आ जाते। पहले से ही उसके पख होते हैं और इसी कारण आवश्यकता
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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