SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८-सम्यक्त्वपराक्रम (२) पुलिस सुपरिटेन्डेट ने लडकी के पता लगाने का बीडा उठाया और उसी माहेश्वरी के घर अड्डा जमाया । दूसरे दिन माहेश्वरी की छोटी बहिन प्रसाद लेकर उधर से निकली । सुपरिन्टेडेट ने उसे अपने पास प्यार से बुलाया और पूछा'वेटी यह क्या ले जा रही हो?' उत्तर मिला- 'मेरे भाई ने मनौती की थी कि लडकी के मारने मे मेरा नाम न आया तो मैं देवी को प्रसाद चढाऊँगा । यह मनीती पूरी हुई है, इसलिए मैं देवी को प्रसाद चढाने जा रही हूं। माहेश्वरी की नन्ही बहिन कपट-युक्ति नहीं जानती थी। अतएव उसने सब बात स्पष्ट कह दी । उसके कहने से ओसवाल की उस लडकी के खून का पता लग गण । माहेश्वरी पकडा गया, उस पर अभियोग चला और उसे यथोचित् दण्ड भी मिला । माहेश्वरी की छोटी वहिन ने सरलभाव से सब बात कह दी, यह अच्छा किया या बुरा किया? यह बात दूसरे से सवन्ध रखती है, इसलिए तुम कदाचित लडकी के कार्य को भला कहोगे, मगर अपने विपय मे देखो, तुम कोई वात छिपाते तो नही हो? किसी किस्म का कपट तो नही करते? कपट करके कदाचित् यहा कोई वात छिपा लोगे तो क्या परलोक मे भी वह छिपी रह सकेगी ? जव परलोक मे वह बात प्रकट होती ही है तो फिर कपट करने का पाप क्यो करने हो ? कपट करके पाप छिपाने से पाप अधिक बढता है । अतएव पाप को प्रकट करके उसकी सरलतापूर्वक आलोचना कर डालना चाहिए । इसी में कल्याण है । एक कवि ने कहा है - जैसे बालक निष्कपट भाव से अपने पिता के समक्ष सारी बातें स्पष्ट कह देता है, उसी
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy