SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 175
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ग्यारहवां बोल-१४७ की बात साधुओं को लक्ष्य करके कही गई है तथापि वह सभी के लिए हितकारी है। ईर्यासमिति, भाषासमिति, एषणासमिति, आदाननिक्षेपणसमिति और उच्चारादिपरिष्ठापनिकासमिति, यह पाच समितियाँ हैं और मनोगुप्ति, वचनगुप्ति एव कायगुप्ति, यह तीन गुप्तियाँ हैं । इस प्रकार इन आठ प्रवचनमाता में समस्त सद्गुणो का समावेश हो जाता है। यह आठ प्रवचन जैसे साधुओ के लिए हितकरो है उसी प्रकार गृहस्थो के लिए भी हितकारी हैं। ईर्यासमिति का अर्थ है-मर्यादापूर्वक गमन करना । मर्यादापूवक गमन किस प्रकार करना चाहिए, इसका शास्त्र मे बहुत ही सुन्दर स्पष्टीकरण किया गया है । यद्यपि यह समिति प्रधानरूप से साधुओ के लिए कही गई है परन्तु आप लोग (श्रावक) भी अगर इसका अभ्यास करें तो बहुत लाभ हो सकता है । एक तो इधर-उधर आंखे घुमाते हुए चलना और दूसरे चार हाथ आगे की भूमि सावधानी के साथ देखते हुए चलना, इसमे बहुत अन्तर है । दृष्टि को एकाग्र करके चलना एक प्रकार की योगक्रिया का अभ्यास है। यह अभ्यास कैसा होता है, यह वात अनुभव से ही जानी जा सकती है। चलने की क्रिया जान लेने से निश्चय और व्यवहार दोनो मे बहुत लाभ है और चलने की क्रिया न जानने के कारण निश्चय और व्यवहार-दोनो मे हानि होती है। अमेरिकन विद्वानो ने तो यहाँ तक कहा है कि जैसा प्राणायाम चलते समय हो सकता है, वैसा दूसरे समय नही हो सकता। इतना होने पर भी लोग चलने की क्रिया नही जानते । शास्त्र मे साधुओ के लिए कहा है कि उन्हे
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy