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________________ १४६- सम्यक्त्वपराक्रम ( २ ) करने के लिए तैयार हो जाता है। इसके विपरीत मल्ल या योद्धा अपना दर्द शुश्रूपा करने वाले सेवक के श्रागे प्रकट न करे बल्कि छिपा ले तो उसका दर्द दूर न होगा और नतीजा यह होगा कि मल्ल कुश्ती करने और योद्धा युद्ध करने के लिए फिर जल्दी तैयार नही हो सकेगा । इसी प्रकार जो साधु देवसिक और रात्रिक प्रतिक्रमण मे अपने व्रतो की सारणा वारणा कर लेता है और लगे हुए दोपो को प्रतिक्रमण द्वारा दूर कर देता है, वह साधु निश्चित रूप से अपने कर्मो को जीत लेता है । कहने का आशय यह है कि प्रतिक्रमण द्वारा आस्रव रूपी पानी आने का छिद्र ढँक जाता है और प्रतिक्रण करने वाला निरुद्ध-आस्रव वन जाता है । सवल का अर्थ है - मलीनखराव | किसी वस्तु मे दाग लग जाने से खरावी आ जाती है, उसे सबल कहते हैं । दाग वाली वस्तु अच्छी नही कहलाती । व्रतो मे लगा हुआ दाग प्रतिक्रमण रूपी निर्मल नीर से घुल जाता है और इस कारण चारित्र निर्मल रहता है । प्रतिक्रमण करने वाला निरुद्ध-आस्रव (आश्रंव-रहित ) होने के कारण असवल चारित्र वाला होगा और असवल चारित्र वाला होने के कारण आठ प्रवचन माता का पालन करने में आरूढ होगा । भगवान् की कही हुई आठ प्रवचन माताए आत्मा के लिए माता के समान हैं । प्रवचन की उत्पत्ति भगवान् से ही हुई है । भगवान् के मुख से निकले हुए आठ प्रवचन ( पाच समित, तीन गुप्ति ) आत्मा के लिए माता के समान हितकर है । इन आठ प्रवचनो में बारह श्रगो का समावेश हो जाता है । यद्यपि श्राठ प्रवचनो
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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