SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पांचवां बोल-५ जाता है । इस कथनानुसार गुरू के समक्ष भी उन्ही कार्यों को प्रकट किया जाता है, जिन्हे करना उचित न हो किन्तु कर डाला हो । सुकृत्य तो सुकृत्य है ही । सुकृत्य, दुष्कृत्य नही बन सकता । अतएव सुकृत्य यदि गुरु के समक्ष प्रकट न किये जाएँ तो कोई हानि नही । मगर दुष्कृत्य प्रकट न करने से हानि अवश्यभावी है इसी कारण अपने दुष्कृत्य गुरु के सामने प्रकाशित कर देना आवश्यक है। सवत्सरी आ रही है । जैसे दीपावली के अवसर पर आप अपने घर का कूड़ा-कचरा झाड-बुहार कर बाहर फेक देते है, उसी प्रकार सवत्सरी के शुभ अवसर पर आपको अपने हृदय का कचरा निकाल फैकना चाहिए । भीतर जो पाप घुसा हो उसे बाहर निकाल कर पवित्र बन जाओ। यद्यपि सवत्सरी पर्व का मूल उपदेश आत्मा द्वारा हुए पापो को दूर कर देना है, किन्तु आजकल कुछ लोगो को यह पर्व विघ्नरूप हो रहा है । जो पावन पर्व अन्त करण की मलीनता हटा कर शत्रु के साथ भी मैत्री सम्बन्ध स्थापित करने का सजीव सन्देश देता है, उसी पर्व के लिए क्लेश होना सचमुच बडे ही दुख का विषय है । आप भलीभाति ध्यान रखें कि इस पवित्र पर्व पर आपके निमित्त से तनिक भी क्लेश न हो पाये । आप अपनी आत्मा के दोषो को दूर करके पवित्र बनिये । इस पवित्र पर्व का दिन सच्चे हृदय से, भावपूर्ण आलोचना करने का दिवस है । अतएव इस पर्व का उपयोग जीवन को पवित्र बनाने के लिए ही करना उचित है । __ यहाँ एक शका की जा सकती है । वह यह है कि गुरु के समक्ष मर्यादापूर्वक अपने दुष्कृत प्रकट करना आलो
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy