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________________ ६०-सम्यक्त्वपराक्रम (१) __ पाँचवी बात यह है कि जिसमें सम्पूर्ण वैराग्य हो वह भगवान् है । समग्न लक्ष्मी के साथ सम्पूर्ण वैराग्य का होना आवश्यक है--देखी या अनदेखी किसी भी वस्तु पर ममत्व न हो । कुछ वस्तुएँ ऐसी होती हैं कि देखते ही उन्हें प्राप्त करने का लालच हो आता है और कुछ ऐसी भी हैं जिनके विषय मे सुनने मात्र से लोभ जागृत होता है। जैसे स्वर्ग देखा नही है, उसके विषय में सिर्फ सुना है। उसका लालच होना अनदेखी किन्तु सिर्फ सुनी हुई चीज का लालच होना है । भगवान् तो वही है, जिसे समस्त वस्तुओ का साक्षात् ज्ञान तो हो मगर किसी प्रकार का लोभ-लालच न हो । छठी बात यह है जिसने मोक्ष प्राप्त कर लिया हो, वह भगवान् है । यहाँ प्रश्न हो सकता है कि मोक्ष तो शरीर का त्याग करके सिद्धिस्थान प्राप्त कर लेने पर होता है । शरीर में रहते मोक्ष कैसे हो सकता है ? इसका उत्तर यह है कि सिद्धिस्थान तो ठहरने का एक स्थान ही है, वह स्वय मोक्ष नहीं है । वास्तव मे मोक्ष तो यही हो जाता है। निश्चयनय से यही मोक्ष है । वहाँ तो मोक्ष होने के परचात् रहना मात्र होता है । मुक्त होने के पश्चात् ही वह स्थान प्राप्त होता है, पहले नही । अतएव मोक्ष यही है । यह समझने के लिए एक उदाहरण लीजिए : __ कल्पना कीजिए, एक तबे पर मिट्टी का लेप लगाया गया है । तू बे का स्वभाव पानी पर तैरने का है पर तू बे पर सात-आठ बार लेप लगाने से वह भारी हो गया है । पानी मे छोडने पर तैरने के बदले वह डूब गया। पानी मे पडा रहने से ऊपर की मिट्टी गल गई और हट गई । मिट्टी हटने से तू बा फिर हल्का हो गया और अपने स्वभाव के
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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