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________________ २८ - सम्यक्त्वपराक्रम (१) हैं । ससार में ऐसे अनेक विद्वान् होते हैं, जिनके एक शब्द से ही ससार मे खलबली मच जाती है । किन्तु शास्त्र के अनुसार जिन्होने कषाय पर विजय प्राप्त नही किया है और जिनमे सम्यग्ज्ञान नही है, उनका सूक्ष्म से सूक्ष्म और विशाल ज्ञान भी विपरीत ज्ञान हो है । वह विपरीत ज्ञान अज्ञान रूप है । ऐसे स्थानो पर 'न ज्ञानम् अज्ञानम्' जो कहा गया है सो यह नत्र समास पर्युदास रूप है । पयु दास सदृश अर्थ को ग्रहण करता है | यहाँ पर्युदास नञ्समास न स्वोकार करके प्रसज्य पक्ष स्वीकार करना उचित नही है । प्रसज्य नञ्समास मे 'अज्ञान' शब्द से ज्ञान का सवथा निषेध होता है और यहाँ ज्ञान का निषेव करना अभीष्ट नही है | वास्तव मे यहाँ 'अज्ञान' शब्द से 'ज्ञान का अभाव' अर्थ अभीष्ट नही किन्तु ज्ञान के सदृश 'विपरीत ज्ञान' की गणना अज्ञान मे की गई है । अतएव न जानता ही प्रज्ञान नही किन्तु सशय, विपर्यय और अनध्यवसाय आदि भी अज्ञान रूप ही है । 1 इस प्रकार के अज्ञान को हटाने के लिए जो उद्योग किया जाता है, वह भाव अप्रमाद है । ऐसा अज्ञान सम्यग्ज्ञान से ही मिट सकता है । अगर कोई मनुष्य लाठी मार-मार कर अन्धकार को हटाना चाहे तो क्या अन्धकार हट जायेगा ? नही । हाँ यदि प्रकाश किया जाये तो अन्धकार अवश्य मिट जायेगा । इसी प्रकार अज्ञान अन्धकार भी ज्ञान के प्रकाश से ही दूर हो सकता है । प्रकृत अध्ययन मे ज्ञान के प्रकाश काही मागं बतलाया गया है । अतएव यह अध्ययन भावअप्रमाद से ही सम्बन्ध रखता है । इस अध्ययन में ज्ञान का मार्ग प्रकाशित करने के साथ ही कषाय को जीतने का भी मार्ग बतलाया गया है । आत्मा
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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