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________________ चौथा बोल-२४१ सर्वन और सर्वदर्शी थे, उनसे क्या छिपा था ? वह पहले-से ही सब जानते थे । उन्होने अपने पास आये मेघकूमार से कहा 'मेघ । रात्रि के समय साधुओ की ठोकरो के परिषह से घबराकर तुमने मावुपन छोडने और घर जाने का विचार किया है । इसलिए तुम मेरे पास आये हो ।' मेघकुमार कुलीन थे । वह मन ही मन कहने लगे'अच्छा ही हुआ कि मैं भगवान् के पास चला आया । भगवान् के पास आये विना हो, परबारा चला गया होता तो बहुत बुरी बात होती , भगवान् तो घट-घट की जानते है । मेरे कहने से पहले ही उन्होने मेरे मन की बात कह दी है। इस प्रकार विचार करते हए मेवकुमार ने भगवान् से कहा -'भगवन् आपका कथन सत्य है । मुझमे भूल हो गई है।' भगवान् ने कहा 'मेघ । आज तुम इतने से कष्ट से घबरा गये, पर इससे पहले वाले भव मे तुमने कैसे-कैसे कष्ट सहन किये हैं, इस बात पर जरा विचार करो। इससे पहले भव मे तुम हाथी थे । हाथी के उस भव मे दावानल से बचने के लिए तुमने घास-फूस आदि हटा कर एक मडल तैयार किया था और जगल मे दावानल सुलगने पर जब बहुत-से जीव अपने प्राण बचाने के उद्देश्य से तुम्हारे बनाये मडल मे आने लगे, तब तुमने प्राणियो, भूतो, जीवो और सत्वो पर करुणा करके उन्हे स्थान दिया था । इतना ही नही, खुजली आने पर जब तुमने अपना एक पैर ऊपर उठाया तो एक खरहा तुम्हारे पैर से खाली हुई जगह मे
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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