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________________ २०६-सम्यक्त्वपराक्रम (१) करना चाहिए कि हमने किस उद्देश्य से गृहत्याग किया है और शिरोमुण्डन कराया है ? अगर हमने शारीरिक और मानसिक दु खो से बचने के लिए हो गृहत्याग किया हो तो सब से पहले हमे यह बात समझ लेनी चाहिये कि दुख क्या है ? दु.ख का वास्तविक स्वरूप समझने के लिए शास्त्र मे कहा गया है - जम्मदुक्खं जरादुक्ख रोगा य मरणाणि य । अहो दुक्खो हि ससारो जत्थ किच्चइ जंतुणो ।, - उत्त० १६-१६ । अर्थात् - जन्म दुखरूप है, जरा दुखरूप है, जन्म और जरा के बीच होने वाले रोग आदि भी दुःखरूप है और मरण का दुख तो सब से बडा है । इस प्रकार इस ससार मे दुःख ही दुख हैं । ज्ञानीजन कहते हैं कि ससार को असार और दुखमय समझकर जो उसका त्याग करते हैं वे अनगारिता स्वीकार कर दुःखमुक्त बन जाते हैं । यहाँ एक नया प्रश्न उपस्थित होता है । अनगारिता स्वीकार करने के पश्चात् अनगार ऐसा क्या करता है जिससे वह दुःखमुक्त हो जाता है ? इस प्रश्न का समाधान करने के लिए यह देखने की आवश्यकता है कि दुःख आता कहाँ से है ? कुछ लोग दु ख का मूल कारण न खोज सकने के कारण कहते हैं- 'दुःख परमात्मा देता है, अदृष्ट से दुख होता है या काल दुख पहुचाता है। ऐसा कहने वाले लोगो को दु ख का और कोई कारण मालूम नहीं हुआ, इस कारण उन्होने ईश्वर, अदृष्ट या काल पर दुख देने का दोषारोपण कर दिया है । मगर ज्ञानीजनो का कहना यह है कि आत्मा
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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