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________________ २०४ - सम्यक्त्वपराक्रम ( १ ) इन पदार्थों की बदोलत कही मेरी भी यही दशा न हो जाये ! अतएव मेरे लिए यही उचित है कि मैं पहले हो इन्द्रियभोग के सासारिक पदार्थों का परित्याग कर दू !' इस प्रकार विचार करते-करते समुद्रपाल वैराग्य के रंग में रंग गया । उसने सयम स्वीकार कर लिया । जब धर्म पर श्रद्धा उत्पन्न होतो है तब सासारिक वस्तु का मूल स्वरूप खोजा जाता है और फलस्वरूप सासारिक पदार्थो के प्रति वैराग्य उत्पन्न हुए बिना नही रहता और जव वैराग्य उत्पन्न हो जाता है तब सयम स्वीकार करने मे भी देर नही लगती । सासारिक पदार्थ मनुष्य को किस प्रकार ससार मे फँसाते है और दुःख देते हैं, यह बात समझने योग्य है । अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि अनगारिता स्वीकार करने से क्या लाभ होता है ? इस प्रश्न के उत्तर मे भगवान् ने कहा है कि अनगारिता स्वीकार करने से शारीरिक और मानसिक दुखो से मुक्ति मिलती है । शारीरिक और मानसिक दुखो मे ससार के सभी दुखो का समावेश हो जाता है । शारीरिक दुखो मे छेदनभेदन, ताडन आदि दुखो का समावेश होता है । शरीर का बाहर से छेदा जाना छेदन कहलाता है और भीतर से छेदा जाना भेदन कहलाता है । थप्पड मारना, घूंसा मारना आदि ताडन कहलाता है । इस प्रकार छेदन, भेदन, ताडन . आदि शारीरिक कष्ट है । • इप्ट का वियोग और अनिष्ट का सयोग आदि दुखो का मानसिक दुख से समावेश होता है । इष्ट वस्तु के J 1
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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