SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 208
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९२-सम्यक्त्वपराक्रम (१) संसार के पदार्थों मे कोई स्थल होता है और कोई सूक्ष्म होता है । मगर देखना चाहिए कि स्थल वस्तु से काम चलता है या सूक्ष्म से ? यहाँ स्थूल और सूक्ष्म का अभिप्राय यह है कि जो वस्तु आखो से दिखाई दे सके वह स्थूल है और जो दिखाई न दे सके वह सूक्ष्म है । अपने शरीर में भी सूक्ष्म और स्थूल दोनो प्रकार की वस्तुए मौजूद है । मगर भूल तो तब होती है जब मनुष्य स्थूल वस्तुओ पर ललचा जाता है और सूक्ष्म वस्सुओ को भुला देता है । परन्तु वास्तव मे स्थूल वस्तु, सूक्ष्म के सहारे ही रही हुई है और सूक्ष्म वस्तु के बिना तनिक भी काम नही चल सकता। कल्पना कीजिए, स्थूल शरीर मे से सूक्ष्म प्राण निकल जाये तो स्थूल शरीर किस काम का रहेगा ? किसी मृत स्त्री का शव वस्त्राभूषणो से अलकृत कर दिया जाये तो भी क्या किसी पुरुष को वह आकर्षित कर सकेगा? स्त्री का स्थूल शरीर तो जैसा का तैसा सामने पडा है । सिर्फ सूक्ष्म प्राण उसमे से निकल गये है। इसी कारण उसे कोई स्पर्श भी नही करना चाहता । इस प्रकार स्थूलता, सूक्ष्मता के आधार पर ही स्थिर है । अतएव सूक्ष्मता की सर्वप्रथम आवश्यकता है । जब तुम सूक्ष्म आत्मा को पहचानोगे तो परमात्मा को भी पहचान सकोगे । आन्मा सूक्ष्म है, फिर भी वही सब से अधिक प्रिय है । दूसरी जो वस्तुए प्रिय लगती है वह भी आत्मा के लिए ही प्रिय लगती हैं । सूक्ष्म आत्मा न होती. तो स्थूल वस्तु किसी को भी प्रिय न लगती । मुर्दा को आभूषण पहना दिये जाए तो चाहे पहनाने वाले को आनन्द प्राप्त हो, मगर मुर्दा को किसी प्रकार का प्रानन्द
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy