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________________ १८२-सम्यक्त्वपराक्रम (१) ससार मे धर्म न होता तो दुनिया में कितना भयकर हत्याकाड मच रहा होता, यह कल्पना भी दुखदायक प्रतीत होती है । मानव सस्कृति के होने वाले इस विनाश को केवल धर्म ही रोक सकता है । धर्म के अमोघ अस्त्र द्वाराअहिंसा द्वारा ही यह हिंसाकाण्ड अटकाया जा सकता है । धर्म के अतिरिक्त एक भी ऐसा साधन दिखाई नहीं देता जो मानव-सस्कृति का सत्यानाश करने के लिए पूरे जोश के साथ चढे चले आने वाले विष के वेग को रोक सकता हो । जो धर्म आज दु.खरूप और जीवन के लिए अनावश्यक माना जाता है, वही धर्म वास्तव मे सुखरूप और जीवन के लिए भावश्यक है । साथ ही, जो विज्ञान आज सुखरूप और जीवन के लिए आवश्यक माना जाता है वही विज्ञान वास्तव मे दु.खरूप और जीवन के लिए अनावश्यक है । यह सत्य आज नही तो निकट भविष्य में सिद्ध हुए बिना नहीं रहेगा । आज समझाने से भले ही समझ मे न आये, मगर समय आप ही समझा देगा। धर्म और विज्ञान पर विवेक दृष्टि के साथ विचार किया जाये तो धर्म की महत्ता समझ मे आये बिना नही रहेगी । जो लोग निष्पक्ष दृष्टि से देख सकते है और विज्ञान के कटुक फलो का विचार कर सकते हैं, उन्हे " धम्मो मगल" अर्थात् धर्म मगलकारी है, यह सत्य समझते देर नही लग सकती। प्राचीनकाल मे वायुयान, टेलीफोन, बेतार का तार आदि वैज्ञानिक साधन नही थे । फिर भी प्राचीनकाल के लोग अधिक सुखी थे या वैज्ञानिक साधनो वाले इस समय
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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